मंगलवार, 15 अगस्त 2023

विप्र सुदामा (खण्ड काव्य ) - अशर्फी लाल मिश्र

 -- लेखक -अशर्फी लाल मिश्र अकबरपुर कानपुर।


Asharf Lal Mishra(1943-----)






1- विप्र सुदामा -1 [1]

2- विप्र सुदामा - 2 [1]

3- विप्र सुदामा - 3 [1]

4- विप्र सुदामा - 4 [1]

5- विप्र सुदामा - 5 [1]

6- विप्र सुदामा - 6- [1]

7- विप्र सुदामा - 7- [1]

8- विप्र सुदामा - 8 [1]

9- विप्र सुदामा - 9 - [1]

10 - विप्र सुदामा - 10 [1]

11- विप्र सुदामा - 11 [ 1]

12 - विप्र सुदामा - 12 [ 1 ]

13- विप्र सुदामा - 13 [1]

14- विप्र सुदामा - 14 [1]

15- विप्र सुदामा - 15 [1]

16- विप्र सुदामा - 16 [1]

17- विप्र सुदामा - 17 [1]

18- विप्र सुदामा - 18 [1]

19 - विप्र सुदामा - 19 [1]

20 - विप्र सुदामा - 20 [1]

21 - विप्र सुदामा - 21 [1]

22- विप्र सुदामा - 22 [ 1]

23 - विप्र सुदामा - 23 [1]

24 - विप्र सुदामा - 24 [ 1 ]

25 - विप्र सुदामा - 25 [ 1 ]

26 - विप्र सुदामा - 26 [ 1 ]

27- विप्र सुदामा - 27 [1]

28- विप्र सुदामा - 28 [ 1]

29- विप्र सुदामा - 29 [ 1]

30 - विप्र सुदामा - 30  [ 1 ]

31- विप्र सुदामा - 31 (1)

32- विप्र सुदामा - 32 [1]

33- विप्र सुदामा - 33 [1]

34- विप्र सुदामा - 34 [1]

35- विप्र सुदामा - 35 [1]

36 - विप्र सुदामा - 36 [1]

37- विप्र सुदामा - 37 [1]

38 - विप्र सुदामा - 38 [1]

39 - विप्र सुदामा - 39 [1]

Author : Asharfi Lal Mishra, Akbarpur, Kanpur, India. ©

शुक्रवार, 19 मई 2023

लाल दोहा चालीसा - अशर्फी लाल मिश्र

 लेखक :  अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।©

अशर्फी लाल मिश्र (1943-----)






बंधु

बंधु   दिखें    गाढ़े   काम, या जो करता नेह।

जिमि बरगद की वायु जड़,पोषण करती देह।।1।।

लोकतंत्र

भ्रष्टाचार   दिन   दूना, मानवता का ह्रास।

समाज सेवा पास नहि,लोकतंत्र परिहास।।2।।

व्यर्थ

वर्षा   वृथा   समुद्र   में, धनकहि  देना  दान।

दिन में दीपक वृथा जनु, तृप्तहि भोजन मान ।।3।।

सरस्वती वंदना

विनती वीणा पाणि से, देहु हमें आशीष।

शब्दों के  गठजोड़  से, कहलाऊँ वागीश ।।4।।

अपमान

बिना मान मरिबो भलो, दुखड़ा इक पल जान।

बिना मान जीवन सदा, पल पल दुख अनुमान।।5।।

कपट

छल छद्म होय यदि पास,दूरी रखिए खास।

निकट  के  रिश्ते भले हि, मत करियो विश्वास।।6।।

चाह

अधम केवल धन चाहे, ज्ञानी  चाहे  मान।

नेता  को  कंचन कीर्ति, पाठक चाहे ज्ञान।।7।।

सरस्वती

रमा   का   वाहन उल्लू, हंस  जान  वागीश।

जाके कंठ गिरा बिराजे, कृपा जान जगदीश।।8।।

धरती प्यासी जान के ,जलघर पहुंचे धाय।

जलधर बरसे झूम के ,धरा मगन हो जाय।।9।।

जलधर  देखे गगन में,  केकी   हर्षित   होय।

जलधर बरसे  झूम के, कृषक मगन हो जाय।।10।।

प्रेम  धरा   का  मेघ   से, विधि ने दिया बनाय।

जब भी भू व्याकुल दिखे, घन  गरजे  हरसाय।।11।।

आवास 

झोपड़ि अच्छी महल से, जो आपनि कहलाय ।

जिमि बया बनाये   नीड़, मन  में अति हरसाय ।।12।।

माता

मां  सम  कोई  देव  नहि, अन्न समान  न दान।

पीपल सम कोइ तरु नहि, जनु जीवन वरदान।।13।।

कंचन 

अधिक आयु का मूल्य नहि, कंचन में गुण जान।

शब्दों    के   गठजोड़   का, कहीं न  होता मान।।14।।

वाणी 

वेश वसन  से  संत नहि, नहि कोई विद्वान।

दिखें काक पिक एक से, वाणी से पहिचान।।15।।

प्रेम 

प्रेम हिये की अनुभूति, नहि चाहे प्रतिदान।

होय चाह प्रतिदान की, उसे वासना जान ।।16।।

स्नेह

नेह   निकटता   से   बढ़े, दूरी  से  हो   दूर।

पशु पक्षी भी होंय निकट, मिले नेह भरपूर।।17।।

विनय 

मैं हूँ अधम खल कामी, करुवे    मेरे    बोल।

नाथ कर दो  मम वाणी, मीठी अरु अनमोल ।।18।।

भ्रम

स्वर्ण मृग था कहीं नहीं, भ्रम  में  भटके राम।

जो भी नर भ्रम में पड़ा, बिगड़ा उसका काम।।19।।

अल्प ज्ञानी

अल्प ज्ञानी अभिमानी, मन  से  क्रोधी  होय।

वेश   होय   आडम्बरी, क्रोधहि, आपा खोय।।20।।

राजनीति

स्वर बदला वेश बदला, जब दल बदला जाय।

साथ  में  धब्बा   काला,दल  बदलू  कहलाय।।21।।

राजनीति

मुफ्त   रेवड़ी      बांटिये,  भोली जनता साथ।

अर्थ व्यवस्था हो शिथिल,केवल  सत्ता   हाथ।।22।।

जीवन मंत्र 

जीवन के मंत्र मानो, प्रेम सत्य अरु ज्ञान।

होय विश्वास कर्म में,फल  देगा  भगवान।।23।।

निन्दित कर्म करता जो, अरु पाछे पछताय।

ऐसी  बुद्धि   कर्म   पूर्व, दौलत  घर में आय ।।24।।

जाको प्रिय मीठा वचन, ताही सों प्रिय बोल।

मृगहि हनन को व्याध भी, गावै मधुर अमोल।।25।।

अग्नि  गुरु  राजा  नारी, मध्यावस्था       सेय।

निकट होये विनाश भय, दूरहि फल नहि देय।।26।।

ऊँचे  आसन   से   नहीं, गुण से उत्तम जान।

मन्दिर शिखर पर कागा, नाहीं गरुड़ समान।।27।।

पिता जिसका रत्नाकर, बहन  लक्ष्मी  होय।

ऐसा शंख होय भिक्षुक, भीख न देता कोय।।28।।

सौ  सुत  से  उत्तम   एक , जो  होवे  वागीश।

जिमि इक चंदा तिमिर हर, कहलाये रजनीश।।29।।

प्रसंगानुसार      भाषण,शक्ति अनुसार क्रोध।

प्रकृति के अनुकूल प्रिय, बुद्धिमान कह शोध।।30।।

भेदभाव 

पुत्री  सबको  मन  भावै, बहु को सेवक जान।

जिहि घर बहुयें प्रिय लगें, ता घर स्वर्ग समान।।31।।

दृढ़ता

मन में दृढ़ता होय यदि, शिखरहु पद तल मान।

मन में दृढ़ता होय नहि, असफल जीवन जान।।32।।

जल 

औषधि है जल अपच में, पचने  पर बल देय।

भोजन  में   पीयूष   सम,भोजनान्त विष पेय ।।33।।

दोहे उषा सौन्दर्य पर

गालों पर लाली दिखे, बिंदी उसके भाल।

नित्य बुलाये विहस कर, आओ मेरे लाल।।34।।

देय  समय  पालन  शिक्षा, कभी  न  होती   लेट।

बिनु वाणी बिनु कलम के, बिना अक्षर बिनु स्लेट।।35।।

चिर सुहागिन प्रकृति से, सदा हि बिंदी भाल।

बिना जाति बिनु धर्म के, मनु  ऊषा  वाचाल।।36।।

स्वर्ग 

पुत्र   होय  आज्ञाकारी, तिय हो मन अनुसार।

अल्प विभव से तुष्टि हो, यही  स्वर्ग  का सार।।37।।

राजनीति

गुंडे    दबंग    बढ़   रहे, राजनीति के साथ।

क्रिमिनल भी हैं जुड़ रहे, लिये  पोटली हाथ।।38।।

भय

भय से डरिए ही सदा, जब तक आया नाहि।

सम्मुख आया होय भय, मार भगाओ ताहि।।39।।

चतुर 

चतुर उसे ही जानिये, जो प्रिय वादी होय।

स्पष्ट वक्ता होय यदी, धोखा नाहीं कोय।।40।।

शून्य

संतान बिन घर सूना, जनु मूरख बिन ज्ञान।

गरीबी होय  पास  में, मनु सूना  जग जान।।41।।

जोड़ी 

सदा सावधान रहिये, जोड़ी    रखिये   भाय।

वायस से सीखो इसे, 'लाल' कहत समझाय।।42।।

टहलना 

ऊषा कालहि घूमिये, श्वानहि की हो चाल।

देह   में  आये  फुर्ती, घूमे    ऊषा    काल।।43।।

शिक्षा 

अल्पहि भोजन से तुष्टि, कबहुँ न मांगे भीख।

स्वामि भक्ति अरु शूरता, श्वानहि से ही सीख।।44।।

-- लेखक एवं रचनाकार अशर्फी लाल मिश्र अकबरपुर कानपुर।©

– लेखक रचनाकार -अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर। ©




शनिवार, 12 नवंबर 2022

बचपन के कुछ स्मरणीय एवं दुर्लभ चित्र

 -- अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर, कानपुर।

अशर्फी लाल मिश्र 






बचपन के कुछ स्मरणीय एवं दुर्लभ चित्र 

1957








1960








1964














1964



































अन्य चित्र : 

आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर भारत सरकार द्वारा प्राप्त प्रमाण पत्र 

प्रमाण पत्र 













[ 2024 ]







रविवार, 3 जुलाई 2022

लाल नीति संग्रह : भाग - 2

                                                          श्रीगणेशाय नमः 

--अशर्फी लाल मिश्र , अकबरपुर ,कानपुर। 

अशर्फी लाल मिश्र 






शुभ काम 

मर्यादित रखो भाषा,घर  में  हो  शुभ  काम। 

आचरण रखो संयमित, खर्चो कुछ भी दाम।।1।।

सुख-शांति 

जिस  घर   गुस्सा  वासना,मन  में  लालच होय। 

उस घर नहि हो सुख शांति,यह जानत सब कोय।।2।।

सशस्त्र सेना झंडा दिवस (7 दिसंबर )

दल सशस्त्र झंडा दिवस, खुलकर दीजै दान। 

शहीद अपंग परिवार, होय महा कल्यान।।3।।

विश्व मानवाधिकार दिवस (10 दिसंबर )

अनेकता  में  एकता, राष्ट्र की  यह पुकार। 

अर्थ होये या समाज, हो उन्नति अधिकार।।4।।

विजय दिवस (16 दिसंबर )

विजय दिवस के पर्व पर,हर्षित सारा देश। 

भारत अपनी शक्ति का,दे दुश्मन सन्देश।।5।।

अल्पसंख्यक अधिकार दिवस (18 दिसंबर )

आज अल्पसंख्यकों में, दिखता हर्ष अपार। 

भाषा जाति संस्कृति का,है विशेष अधिकार।।6।।

समर्थ 

समर्थ सदा उसे कहें,घमण्ड पास न कोय। 

महिला वृद्ध बच्चों की,सुरक्षा करता होय।।7।।

करक चतुर्थी 

नारी व्रतों  में  उत्तम,करक चतुर्थी जान।

चिर सुहागिन संदेशा, इसकी मंशा मान।।8।।

यूक्रेन रूस युद्ध में तिरंगा 

यूक्रेन  रूस  युद्ध   में,तिरंगा बना ढाल। 

हर कोई चिल्ला रहा,झंडा  रोके  काल।।9।।

पाक   छात्र   यूक्रेन   में,तिरंगा  लिए साथ। 

आज ढाल हर किसी का,झंडा जिसके हाथ।।10।।

बेटी 

बेटा से अधिक करिये,बेटी पर विश्वास। 

ख्याल रखती है बेटी,दूर होय या पास।।11।।

होली 

होली पर्व रंगों का,मन का मिटै मलाल।

कोई रंग बरसाये, कोई   मले   गुलाल।।12।।

भेद 

नेता पुलिस  रिपोरटर,या अधिवक्ता होय। 

इनसे  सदा  सावधान,भेद   रखिये    गोय।।13।।

जनतंत्र 

मुफ्त योजनायें फलित,कर्ज हो रहे माफ़। 

प्रभावित होये विकास,सत्ता मारग साफ।।14।।

राजनीति व्यापार जनु, जो निज हित में मान। 

विरला  ही  कोई  दिखे,ता  जनहित   में  जान।।15।।

दर्शन जनप्रतिनिधि नाहि,होते   सालों     साल।

अब   धन्यवाद    भी   बंद,जनता लिए मशाल।।16।।

पवन 

शीतल मंद पवन सदा, सब को अधिक सुहाय। 

वही पवन अति वेग से,नहि  काहू  मन   भाय।।17।।

भाषा 

गरम बात से खिन्न मन ,गरम वात से गात। 

दोनों  से  तन  मन   दुखी,दिन होये  या रात।।18।।

अपनों के मध्य 

पशु पक्षी भी खुश होयें ,पाकर अपना झुंड। 

जो खुश होता नहि दिखे , वह हैं शिला खंड।।19।।

ओमीक्रोन वायरस 

कोरोना      ओमीक्रोन ,सदा  ही  सावधान। 

मॉस्क अरु दूरी रखना ,केवल एक निदान।।20।।

फास्ट फूड 

नीरोगी काया बने, फास्ट फूड का त्याग। 

शरीर में  फुर्ती रहे, आलस   जाये   भाग।।21।।

फास्ट फ़ूड से हो रही, युवा शक्ति कमजोर। 

सेना पुलिस  भर्ती में,खोजें   रिश्वत   खोर।।22।।

रिश्ते 

गरीबी में अपने भी, रिश्ते जाते टूट। 

अमीरी देख ढूंढ़ कर ,रिश्ते बनते अटूट।।23।।

त्याग 

चरित्रहीन व्यक्ति पालन,मूर्ख शिष्य को ज्ञान। 

इनको   सदैव   त्यागिये ,यदि  चाहो   उत्थान।।24।।

धनवान 

सद्विद्या  हो  पास  में,धनी  उसे ही  जान। 

अपयश का जीवन सदा,मानो मृत्यु समान।।25।।

(अशर्फी लाल मिश्र)

दुर्जन 

होय तक्षक विष दंत में,वृश्चिक पूँछहि संग। 

मधुमक्खी सिर जानिये, दुर्जन सारे अंग।।26।।

दुर्जन  को  शिक्षा दीये ,कबहुँ न सज्जन कोय। 

जिमि जड़ सींचे दूध से,नीम   न   मीठी  होय।।27।।

अनर्थ 

यौवन धन संपत्ति हो,प्रभुता अरु अविवेक। 

चारो  होंय  एक साथ,अनर्थ    होंय   अनेक।।28।। 

प्रकृति 

हो  धीरज  वाणी उचित, या   उदारता   ज्ञान। 

इनको मानो सहज गुण, नहि उपदेशन भान।।29।।

शिष्टाचार 

लघुता में गुरुता छिपी ,गुरुता को लघु मान। 

पहले    बोले    भेंट   में,  उसमे गुरुता मान।।30।। 

पाप 

हिय में जिसके पाप हो, तीरथ गये न शुद्ध। 

मदिरा  घट  तपाये  से,फिर भी रहे अशुद्ध।।31।। 

मान 

वृक्ष एक के पुष्पों से,विपिन सुवासित जान। 

वैसे हि सु संतान से , कुल का जग में मान।।32।।

सफलता का मन्त्र 

चुप से मिटे कलह सदा , दरिद्रता उद्योग। 

जाग्रत का ही भय मिटे,यह जानत सब कोय।।33।। 

निःस्पृह 

अधिकार पाकर कोई,निःस्पृह कैसे होय। 

जिमि श्रृंगार प्रेमी नर, अकाम नाही होय।।34।।

द्वेष  

मूर्ख  द्वेष सदा बुध सो ,रंक   धनी  से  मान। 

परांगना   कुलीना    सो ,विधवा सधवा जान।।35।।

(अशर्फी लाल मिश्र )

रक्षण 

धन से  रक्षित  धर्म होय, योग से रक्षित ज्ञान। 

भली नारि से घर रक्षित, मृदता   से    श्रीमान।।36।। 

अंधा 

कुछ हों  गरज  पर अंधे,कुछ  होते कामांध। 

कुछ मद में अंधे  दिखेँ ,कुछ होते जन्मांध।।37।। 

शत्रु 

वैरी  सदा  ऋणी   जनक, मूरख  पुत्र  को  जान। 

व्यभिचारिणी हो जु मातु, सुन्दर तिय अनुमान।।38।। 

धन 

समाज में जीवित वही,हो धन जिसके पास। 

मीत बन्धु हों पास में, दिखे गुणो का  वास।।39।। 

दुख 

घरनि  मरे  बुढ़ापे में,धन हो भ्राता हाथ। 

भोजन होय पराधीन,दुखड़ा केवल साथ।।40।।

स्वास्थ्य 

झाग  हटा  हल्दी   डाल ,तब ही दाल उबाल। 

गठिया पथरी होय कम ,दुपहर  खाये  दाल।।41

आभूषण 

गुण आभूषण रूप का,कुल का मानो शील। 

विद्या भूषण सिद्धि का, धन होय क्रियाशील।।42।।

कुल 

ऊँचा कुल किस काम का, जिसके विद्या नाहि। 

विद्या जिसके पास हो, कुल मत पूँछो ताहि।।43।।

सुख 

मोहि सरिस कोइ शत्रु नहि,काम सरिस नहि रोग। 

क्रोध  सरिस  पावक  नहीं,ज्ञान सरिस सुख भोग।।44

यथार्थ 

रूप   यौवन  सम्पन्ना, होय जु विद्या हीन। 

बिना गंध किंशुक यथा,दिखे   रंग    रंगीन।।45।। 

निंदा 

गुणी की निंदा तब तक, जब तक नहि गुण भान। 

भीलनि रुची  गुंजा फल, नहि गज मुक्ता ज्ञान।।46।।

विश्वास 

मीत कुमीत दोऊ का ,मत कीजे विश्वास। 

मीत कबहूँ कुपित भयो,करे भेद परकास।।47।। 

बन्धु 

बन्धु   दिखें   गाढ़े    काम,या जो करता नेह। 

जिमि बरगद की वायु जड़,पोषण करती देह।।48।।

लोकतंत्र 

भ्रष्टाचार   दिन   दूना,मानवता का ह्रास। 

समाज सेवा पास नहि, लोकतंत्र परिहास।।49।। 

व्यर्थ 

वर्षा     वृथा   समुद्र   में,धनकहि   देना   दान। 

दिन में दीपक वृथा जनु, तृप्तहि भोजन मान।।50।। 

सामर्थ्य 

नेता क्या नहि कर सके,कवि को क्या न लखाय। 

क्या न शराबी बक सके,कागा  क्या  नहि  खाय।।51

--लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र ,अकबरपुर ,कानपुर। ©


शनिवार, 25 जून 2022

लाल नीति संग्रह : भाग -1

 लेखक - अशर्फी लाल मिश्र ,अकबरपुर,कानपुर 

अशर्फी लाल मिश्र






लेखनी 

मत करियो कुंठित कलम, गाय मनुज यश गान। 

मानव  हित   में   लेखनी , वही     लेखनी   जान।।1।।

राजनीति 

राजनीति की कोठरी , कालिख से भरपूर। 

विरला ही कोई मिले, हो कालिख से दूर।।2।।

चुनाव    आते    फूटता , जातिवाद नासूर।

मतदाता को भ्रमित कर, करते चाहत पूर।।3।।

अपराधी लड़े चुनाव, नहि निर्भय मतदान।

पराजित हो अपराधी, वोटर खतरे जान।।4।।

जातिवाद का  देखिये ,लोकतंत्र  में  खेल। 

समाज सेवा होइ नहि,यह सिद्धांत अपेल।।5।।

अपराधी     गले     माला, राजनीति   के   संग। 

पुलिस जिसकी तलाश में, अब वही रक्षक संग।।6।।

राजनीति में आज है, जातीयता      प्रचंड। 

कैसे मिठे समाज में, कौन विधि खंड खंड।।7।।

कला धन होय सफ़ेद, राजनीति  के संग। 

साथी सब नेता कहें ,शत्रु  रह जाये  दंग।।8।।

साक्षर होय केवल वह, अशिष्ट भाषा होय। 

काला धन हो पास में, मंत्री  बनता  सोय।।9।।

उत्सव होइ चुनाव का,बजै जाति का ढोल। 

खाई जनता में बढ़े ,सुन सुन कड़ुवे बोल।।10।।

जातिवाद अभिशाप है ,लोकतंत्र के देश। 

समाज सेवा होइ नहि , जातिय झंडा शेष।।11।।

राजनीति की नाव पर ,चढ़ता जो असवार। 

पिछड़े दलित शब्द सदा  ,राखै दो पतवार।।12।।

काला धन 

काला होय धंधा  धन, दोनों  रहते गोय। 

जीवन सदा सुखी रहे , सत्ता कंधा होय।।13।।

काले धन में वह शक्ति,सत्ता देय हिलाय। 

देश खोखला साथ में, छवि मलीन हो जाय।।14।।

निंदा 

निंदा  से घबड़ाय  कर, लक्ष्य छोड़िये नाहि। 

राय बदले निंदक की , देखि सफलता पाहि।।15।।

अमोघ अस्त्र राजनीति,निंदा को ही जान।

धीरज  धरि  नेता  सुने, नेता वही महान।।16।।

जीवन  

दिन     बीते     रात    बीते, पल पल  बीता  जाय। 

जन हित में कुछ क्षण लगें, जीवन सफल कहाय।।17।।

मित्र  

मिले अचानक मीत यदि, हर्षित  नाहीं नैन। 

त्यागहु  ऐसे   मीत    को,याही में सुख चैन।।18।।

चिंता 

ज्यादा   चिंता  जो  करे , रक्त चाप बढ़ जाय। 

बिनु अग्नी जीवित जले, जग में होत हसाय।।19।।

भ्राता 

बड़ा भ्राता पिता तुल्य ,छोटा पूत समान। 

भ्राता से न बैर कभी , दौलत ओछी जान।।20।।

जुड़वां भ्राता भले ही,गुण में नहीं समान। 

जैसे काँटा अरु बेर , गुण में नहीं समान।।21।।

लक्ष्मी 

न युगल में लड़ाई हो,न मूर्ख पूजा जाय। 

घर में कुछ संचय होय,लक्ष्मी दौड़ी आय।।22।।

चंदन निज कर से घिसे, माला गूँथे हाथ। 

स्तुति लिखे जो निज कर से, लक्ष्मी रहती साथ।।23।।

त्याग 

विद्याहीन गुरू  त्याग, बन्धु त्याग बिनु प्रीति। 

देश काल भी त्यागिये,जँह  कोई   नहि   नीति।।24।।

धन 

मीत  बन्धु  चाकर  सभी,त्यागैं  लख धनहीन। 

धनहि देख सब हों निकट, धन ही श्रेष्ठ प्रवीन।।25।।

(अशर्फी लाल मिश्र)

महत्व 

बूँद बूँद  से  घट भरे,शब्द शब्द से ज्ञान। 

मात्र एक ही वोट से ,सत्ता पाय सुजान।।26।।

गुरु 

माता होय प्रथम गुरू ,दूजा गुरु पितु मान। 

औपचारिक देय ज्ञान ,अन्य गुरु उसे जान।।27।।

रिश्ते 

अपने रिश्ते हैं वही, दुख में आयें काम। 

भूलहु रिश्ते खून के ,यदि होयें बेकाम।।28।।

वाणी 

वाणी जिसकी मधुर नहि,आगत आदर नाहि। 

भले   हि   राजा  देश  का, मत घर जाओ ताहि।।29।।

विद्या 

विद्या सदा उसे मिले,जिसे न घर का राग। 

पल पल का मूल्य समझे,सुख का करता त्याग।।30।।

ईमान 

अरे  माटी  के   पुतले,बन जाये इंसान। 

चंद कागज के टुकड़े ,पर खोता ईमान।।31।।

फास्ट फूड 

फ़ास्ट फ़ूड सेवन करे,ताहि मुटापा होय। 

शरीर का पौरुष घटे, रोग अस्थमा होय।।32।।

केश 

श्वेत  केश   तजुर्बे   के, काले  केश उमंग। 

काजल रेख नयन संग, मन में भरता रंग।। 33।।

मृदुलता 

पाहन  हिय  मृदुता  संग,सरल ह्रदय बन जाय।

जिमि शैल खंड जल धार,रुचिर शिवांग कहाय।।34।।

कद 

छोटा कद होय पति का, पत्नी लम्बी होय। 

कितनी सुन्दर होय छबि, जोड़ी फबै न सोय।।35।।

पति से होय अधिक शिक्षा,धनी मायका होय।

छोटा  कद  होय  पति  का, जोड़ी फबे न सोय।।36।।

धैर्य 

विपरीति परिस्थिति जानि,धीरज राखे धीर। 

अनुकूल परिस्थिति होय,जो सुमिरै रघुवीर।।37।।

माता 

जननी से माता बड़ी,जिसने पालन कीन्ह। 

मातु यशोदा हर कंठ, देवकी जन्म दीन्ह।।38।।

परिवर्तन 

बदल रही है संस्कृती ,बदल रहा है देश। 

माता पिता स्वदेश में, बेटा बसा विदेश।।39।।

कर्तव्य 

सेवा नहि पितु मातु की,सेवा   कैसे   होय। 

जैसा   तेरा     कर्म    है,फल मिलेगा सोय।।40।।

स्वास्थ्य 

चीनी मैदा मंद विष ,कम करिये उपयोग। 

हो जाय हाजमा मंद,होय शुगर का  योग।।41।।

तेल उबले प्रथम बार,ताही में पकवान। 

उबले तेल बार बार,उसमें कैंसर जान।।42।।

आध्यात्म 

उड़ जा  पंछी उस  देश,जहाँ न राग न द्वेष। 

जँह पर कोई नहि भेद, ऐसा   है   वह   देश।।43।।

शीतल मन्द  पवन सदा,ताप नाहि उस देश।

बसिये    ऐसे    देश   में,रोग जरा नहि शेष।।44।।

सतगुण तमगुण और रज,से चालित संसार।

चौथा   गुण  जो  जान   ले,बेड़ा  उसका पार।।45।।

साधु 

बचपन यौवन पार कर,वानप्रस्थ का ज्ञान। 

सब माया को त्याग दे,उसे  हि साधू जान।।46।।

कंचन कामिनि कीर्ति की,जिसमें इच्छा होय। 

भले ही वेश साधु का,फिर भी साधु न होय।।47।।

संत उसे ही मानिये,मन से उज्ज्वल होय।

मानवता का तत्व हो,द्वेष भाव नहि कोय।।48।।

लोकतंत्र 

लोकतंत्र है अग्रसर,राष्ट्रवाद की ओर। 

जातिवादी राजनीति, होय रही कमजोर।।49।। 

जल 

पोखर  ताल सिकुड़  रहे, गहरे  करे  न   कोय। 

समर पम्प घर घर लगे,अतिशय दोहन होय।।50।।

मीठा जल बरसात का,ईश्वर   का    वरदान। 

इसको  सदा  सँजोइये, जल है सब की जान।।51।।

-- लेखक एवं रचनाकार : अशर्फी लाल मिश्र, अकबरपुर , कानपुर।©




रविवार, 22 अगस्त 2021

लाल काव्य संग्रह

 

                      *श्रीगणेशाय नमः *


                    ** लाल काव्य संग्रह **

[ रचयिता : कवि अशर्फी लाल मिश्र   ,अकबरपुर। कानपुर ]

अशर्फी लाल मिश्र 

विषय सूची (Contents)

1 - काव्य संग्रह -भाग -1 (ऋतु वर्णन )

2 - काव्य संग्रह -भाग-2 (माधुर्य भक्ति )

3 - काव्य संग्रह -भाग-3 (प्रकृति वर्णन )

4 - काव्य संग्रह - भाग-4 (देश-भक्ति)

5 - काव्य संग्रह-भाग-5(राम काव्य)

6 - काव्य संग्रह-भाग-6(राजनीति)

7 - काव्य संग्रह-भाग-7 कोरोना

8 - काव्य संग्रह-भाग-8 (सुदामा)

9 - काव्य संग्रह-भाग-9(महाप्रयाण)

10 - काव्य संग्रह-भाग-10(निडर)

11 - काव्य संग्रह-भाग-11(मोती)

12 - काव्य संग्रह-भाग-12(राजपथ)

13 - काव्य संग्रह-भाग-13(अपमिश्रण)

14 - काव्य संग्रह-भाग-14(भ्रष्टाचार)

15 - काव्य संग्रह-भाग-15(निर्गुण)


[Poet ,writer & author : ©  Asharfi Lal Mishra]



रविवार, 25 अक्तूबर 2020

Digital author -Asharfi Lal Mishra

 

Asharfi Lal Mishra(June 1943---)

Asharfi Lal Mishra(June 1943---)

बचपन के कुछ स्मरणीय एवं दुर्लभ चित्र

जीवन परिचय 
नाम -अशर्फी लाल मिश्र कवि (Digital Author )
पिता का नाम -राम खेलावन  मिश्र[1] - (शिक्षक, प्रथम ग्राम प्रधान -इंजुआरामपुर[2] 
Father's Name-Ram Khelawan Mishra- (Teacher, First Gram Pradhan-Injuwarampur)
जन्म - जून 1943 
ब्राह्मण : कान्यकुब्ज
आस्पद :  मिश्र बैजेगांव
गोत्र : कात्यायन 
जन्म स्थान : इंजुआरामपुर , तहसील डेरापुर ,कानपुर ,उत्तर प्रदेश  ,भारत।
शिक्षा : एम 0 ए 0  , साहित्य रत्न (संस्कृत )
व्यवसाय : शिक्षण 
 
शिक्षण विषय : गणित ,हिंदी 
शिक्षण स्तर : हाई स्कूल , इण्टर
शिक्षण संस्था : गलुवापुर इण्टर कॉलेज ,गलुवापुर ,कानपुर
शिक्षण अवधि : 1970 -2003
पुरस्कार -शिक्षक पुरस्कार -1998 
सेवा निवृत्ति : 2003 
प्रकाशित  पाठ्य  पुस्तकें   : 
1 -सरल हाई स्कूल गणित (सामान्य गणित)
2 - रचनात्मक रेखागणित
अविभाजित कानपुर जिले के चुनिंदा गणित  शिक्षकों में गिनती । कानपुर देहात जिले के उल्लेखनीय शिक्षक [1] [2]

साहित्यिक परिचय 

  इंटरनेट जगत में  कदम रख कर  मैंने साहित्य दुनियां में प्रवेश  कर साहित्य की नई विधा ब्लॉग को अपना कर  निम्न 4 ब्लॉग लिखे  जिनमें  आज तक लगभग 898शीर्षकों के अंतर्गत साहित्यिक , राजनीतिक , सामाजिक आदि विविध विषयों पर लेख लिखे गए जो हिंदी साहित्य जगत , राजनीतिक एवं सामाजिक दिशा को एक नवीन दिशा देने में सक्षम हैं :

                  1 -एक नजर इधर भी -अपना ब्लॉग -नवभारतटाइम्स -470शीर्षक
2 - प्रकाश-पुंज ब्लॉग -103शीर्षक
3 -परिवर्तन  ब्लॉग -55 शीर्षक

4 - काव्य दर्पण ब्लॉग -270शीर्षक

Published electronic literature (free of cost )

1(i) -लाल शतक (दोहे)-खण्ड-1   (अमरउजाला.कॉम) 
(ii)लाल शतक (दोहे)-खण्ड -2 (अमरउजाला .कॉम)

2-लाल शतक (दोहे) 

3-काव्य संग्रह: अशर्फी लाल मिश्र  [1] 

4-लीला सप्तक(काव्य)  [1] 
5(1)-लाल नीति संग्रह : भाग -1 
(2) लाल नीति संग्रह - भाग -2
6- लाल दोहा चालीसा [1]
7- विप्र सुदामा

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Asharfi Lal Mishra  [A L Mishra]

निशुल्क Electronic Literature की सूची :

1 -e-Valmiki Ramayana         

2-लाल शतक(अर्थ सहित)

3-काव्य संग्रह 

                          4-ब्रजभाषा के कृष्ण-काव्य में माधुर्य-भक्ति के कवि  

5-अशर्फी लाल के दोहे                   

6-श्रेष्ठ हिंदी निबंध                        

 7-मेरे स्मरणीय प्रसंग                      

8-  हिंदी साहित्य के उल्लेखनीय लेख

   9- Online a brief Valmiki Ramayana

  10-लीला सप्तक (काव्य)  लीला सप्तक(काव्य) 
11(1) लाल नीति संग्रह-भाग - 1
                      (2) लाल नीति संग्रह - भाग -2   
12-लाल काव्य संग्रह           

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*End*





विप्र सुदामा (खण्ड काव्य ) - अशर्फी लाल मिश्र

 --  लेखक -अशर्फी लाल मिश्र अकबरपुर कानपुर। Asharf Lal Mishra(1943-----) 1- विप्र सुदामा -1  [1] 2- विप्र सुदामा - 2  [1] 3- विप्र सुदामा - ...